साहित्य || Books
![प्राणाधार सुन्दरसाथ जी, अब हमारे समक्ष श्री कुलजम स्वरूप के किसी भी ग्रन्थ की कोइ सी भी चौपाई अकारादि वर्ण क्रम से बहुत ही सरलता से प्राप्त हो गई है अतः आप अकार इकार उकारादि किसी भी वर्ण से सारी चौपाइया ढूंढ सकते है। केवल अ लिखने पर ही सम्पूर्ण वाणी मे से अ से शुरु होने वाली सारी चौपाईया आपके समक्ष उपस्थित हो जाएगी। ऐसे ही आप और अक्षरो को भी लिख सकते है ।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/Vani_alphabetical.png)
श्री कुलजम स्वरुप - वर्णानुसार
प्रकाशक : श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, सरसावा (उ.प्र.)![प्रियतम के साक्षात्कार का एकमात्र साधन अनन्य प्रेम ही है। यद्यपि इस संसार में अनेक प्रकार की भक्ति हैं, किंतु उनमें कर्मकाण्ड और उपासना की ही प्रधानता है। ज्ञान और विज्ञान (हकीकत और मारिफत) की राह पर सभी नहीं चल सकते, इसलिये तारतम ज्ञान के प्रकाश में सभी को सत्य-मार्ग पर ले चलने के लिये कर्मकाण्ड और उपासना को ही प्रेम की सुगंध से सुवासित किया गया है, जिसे सेवा-पूजा कहते हैं। बिना प्रेम के सेवा नहीं हो सकती। सेवा पूजा का अभिप्राय है - प्रेम पूर्वक सत्कार करना अर्थात् परमधाम में होने वाली अष्ट प्रहर की लीला के भावों में डूबे रहना। इसे शुष्क कर्मकाण्ड के रूप में न मानकर अनन्य प्रेम के भावों में ही प्रयुक्तक्त करना चाहिए, तभी आत्म जागृति का मार्ग खुल सकता है। ब्रह्मसृष्टियों को तो उठते-बैठते, सोते-जागते, पल-पल अपने प्रियतम को अपने धाम हृदय में बसाना होता है। इसके लिये प्रेम पूर्वक की जाने वाली सेवा-पूजा पहली सीढ़ी है, जिस पर कदम रखने के बाद ज्ञान-विज्ञान की राह प्राप्त होती है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/sewa_puja.jpeg)
सेवा पूजा
प्रकाशक : श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, सरसावा (उ.प्र.)![सन् २०११ में जयपुर के सुन्दरसाथ नवीन जी के घर में ७ दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। श्री राजन स्वामी जी ने उस कार्यक्रम में श्री तारतम वाणी के प्रत्येक ग्रन्थ में से किसी एक प्रकरण के विषय पर चर्चा की थी। यह ग्रन्थ उनकी चर्चाओं का ही लिखित रूप है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/tartam-ke-nirjhar.jpg)
तारतम के निर्झर
प्रवक्ता- श्री राजन स्वामी![श्री राजन स्वामी द्वारा मॉडल टाउन, दिल्ली में हर मास गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। उसी कार्यक्रम में से श्री तारतम वाणी की छः चर्चाओं को चुनकर एक सुन्दरसाथ ने लिखित रूप प्रदान किया है, जो इस ग्रन्थ के रूप में प्रस्तुत है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/brahmvani-charcha.jpg)
ब्रह्मवाणी चर्चा
प्रवक्ता- श्री राजन स्वामी![इस ग्रन्थ में संसार की अन्य ध्यान पद्धतियों की निष्पक्ष विवेचना करते हुए श्री प्राणनाथ जी द्वारा प्रदत्त निजानन्द योग पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है। इसके द्वारा आत्मा इस क्षर जगत एवं बेहद मण्डल से परे परमधाम और अक्षरातीत परब्रह्म का साक्षात्कार करती है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/nijanand-yog.jpg)
निजानन्द योग
लेखक- श्री राजन स्वामी![स्वलीला अद्वैत परमधाम अनादि, अनन्त, अखण्ड, और सच्चिदानन्दमयी है। मन, वाणी से परे होने के कारण यहाँ के भावों के अनुसार ही उसे श्रीमुखवाणी में अति सीमित रूप में उसी प्रकार वर्णित किया गया है, जैसे पृथ्वी को सूक्ष्म बिन्दु के रूप में दर्शाना। अपनी आत्म-जाग्रति के लिए परमधाम का ध्यान अनिवार्य है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/dham-sushma.jpg)
श्री धाम सुषमा एवं परमधाम पटदर्शन
लेखन व चित्रांकन - श्री सुशान्त निजानन्दी![श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, सरसावा में २०१२ में चितवनि शिविर का आयोजन किया गया था। श्री राजन स्वामी जी ने उस कार्यक्रम में वर्तमान समाज में प्रचलित सभी योग पद्धतियों के साथ-साथ अष्टांग योग व निजानन्द दर्शन की प्रेममयी चितवनि की पद्धति पर विस्तार से चर्चा की थी। प्रस्तुत पुस्तक उसी चर्चा-श्रृंखला का लिखित रूप है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/dhyan-ki-pushpanjali.jpg)
ध्यान की पुष्पाञ्जलि
प्रवक्ता- श्री राजन स्वामी![शरीर को निरोग, स्वस्थ, व दीर्घायु बनाने के लिए योग एवं प्राकृतिक जीवन अनिवार्य है। नियमित रूप से योगासन व प्राणायाम का अभ्यास करने से शारीरिक, मानसिक, एवं आध्यात्मिक उन्नति में सहायता मिलती है। साथ ही आहार-सम्बन्धी नियमों का भी ज्ञान होना चाहिए। इस पुस्तक में इसी विषय का विस्तृत वर्णन किया गया है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/swasthya-ke-prehri.jpg)
स्वास्थ्य के प्रहरी
लेखक- आचार्य चन्द्र एवं आचार्य सूर्यप्रताप![सृष्टि के प्रारम्भ से ही मनीषियों में यह जानने की प्रबल जिज्ञासा रही है कि मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, देह और गेह को छोड़ने के पश्चात् मुझे कहाँ जाना है? सच्चिदानन्द परब्रह्म कौन हैं, कहाँ हैं, कैसे हैं, तथा उनकी प्राप्ति का साधन क्या है?
लखनऊ में वर्ष २००९ में एक आध्यात्मिक शिविर का आयोजन किया गया था, जिसमें श्री राजन स्वामी का इन्हीं विषयों पर प्रवचन हुआ था।
इस ग्रन्थ में उस प्रवचन श्रृँखला को लिखित रूप में प्रस्तुत किया गया है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/tamas-ke-paar.jpg)
तमस के पार
प्रवक्ता- श्री राजन स्वामी![परमहंस महाराज श्री राम रतन दास जी का व्यक्तित्व स्वयं में अनोखा है, जिसमें विरह, वैराग्य, प्रेम, साधना, शालीनता, सहनशीलता, एवं समरसता का अलौकिक मिश्रण है। उनके जीवन चरित्र को पढ़कर तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे वे हमारे सामने ही उपस्थित हैं। उनकी आँखों के सामने जो भी आया, उन्हीं का होकर रह गया। उनकी कृपा-दृष्टि जिस पर भी पड़ गयी, चाहे वह अनपढ़ ही क्यों न हो, आध्यात्मिक क्षेत्र का वक्ता बन गया, कर्मकाण्डों के जाल में उलझा हुआ व्यक्ति साक्षात् परमधाम को देखने लगा, तो झोपड़ी में रहने वाला करोड़पति बन गया।
इस ग्रन्थ में महाराज जी की जीवनी का सरल शब्दों में वर्णन किया गया है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/prem-ka-chand.jpg)
प्रेम का चाँद
लेखक- श्री राजन स्वामी![प्रेम, शान्ति, एवं आनन्द की खोज चैतन्य का स्वाभाविक गुण है। सच्चिदानन्द परब्रह्म की अनुभूति ही जीवन का चरम लक्ष्य होना चाहिए। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर, इस ग्रन्थ में वास्तविक सत्य का मार्ग दर्शाने का प्रयास किया गया है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/bodh-manjari.jpg)
बोध मञ्जरी
लेखक- श्री राजन स्वामी![इसमें निजानन्द स्वामी धनी श्री देवचन्द्र जी के जीवन का सचित्र विवरण प्रस्तुत किया गया है। इस कॉमिक्स की रचना विशेषकर बच्चों व किशोरों को सरलता से समझाने के लिए की गई है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/jj.jpg)
श्री निजानन्द स्वामी- चित्रकथा
चित्रांकन- अनु लवली![इस पुस्तक में उस रात्रि का विस्तृत वर्णन है, जब मुहम्मद साहिब (सल्ल.) को परब्रह्म का साक्षात्कार हुआ था। साथ ही उनके बीच हुई वार्ता का भी वर्णन किया गया है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/shab-e-mairaj.jpg)
शब-ए-मे'राज
भाष्यकर्ता- श्री नरेश कुमार मार्तण्ड![तफ़सीर-ए-हुसैनी कुरआन मजीद का सर्वप्रथम अरबी-फ़ारसी टीका है, जो मुहम्मद अली के सुपुत्र हुसैन साहिब द्वारा किया गया। बाद में मौलवी फ़ख़रुद्दीन द्वारा किया गया उसका उर्दू अनुवाद तफ़सीर-ए-क़ादिरी के नाम से प्रकाशित हुआ। वर्तमान में यह हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है।
यह वही ग्रन्थ है, जिसको पहली बार सुनकर श्री जी साहिब तीन दिन तक बिस्तर से नहीं उठे अर्थात् लगातार सुनते रहे।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/tafseer-hussaini.jpg)
अनमोल मोती तफ़सीर-ए-हुसैनी के
भाष्यकर्ता- श्री नरेश कुमार मार्तण्ड![विक्रमी सम्वत् १७३७ में श्री जी साहिब रूहुल्लाह प्राणनाथ जी ने भीम जी भाई से फ़ारसी, नागरी लिपि में फ़रमान लिखवाकर औरंगाबाद के राजा भाव सिंह के दरबार में नियुक्त इस्लामी विद्वान शेख़ फत्हुल्लाह, काज़ी हिदायतुल्लाह, एवं दीवान अमान खान को भिजवाया। तत्पश्चात् बादशाह मुईनुद्दीन (औरंगज़ेब) के दरबार में नियुक्त काज़ी शेख़ इस्लाम, शेख़ रिज़वी खान, तथा पठान दौलत खान को भी भेजा गया। ऐसी मान्यता है कि इन पत्रों को पढ़ने के पश्चात् बादशाह औरंगज़ेब ने श्री जी साहिब जी से गुप्त रूप से दो बार मुलाकात की और उनके ब्रह्मज्ञान से प्रभावित हुआ।
इन पत्रों द्वारा श्री जी ने कुरआन पाक के बातिनी भेद श्री कुल्ज़म स्वरूप के तारतम ज्ञान की रोशनी में प्रकट किये हैं। इस पुस्तक में मूल पत्रों सहित उनका सरल हिन्दी भाष्य प्रस्तुत किया गया है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/farman.jpg)
फ़रमान
भाष्यकर्ता- श्री नरेश कुमार मार्तण्ड![इस पुस्तक में सम्वत् १६३८ से २०६९ (सन् २०१२) तक की जागनी लीला का संक्षिप्त वर्णन है। मुख्य रूप से सदगुरु श्री देवचन्द्र जी, श्री महामति जी, पंजाब के विभिन्न परमहंस, श्री राम रतन जी, एवं धर्मवीर सरकार श्री जगदीश चन्द्र जी की जीवनियों पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/mukhtar-e-hind.jpg)
मुख़्तार-ए-हिन्द
लेखक- श्री नरेश कुमार मार्तण्ड![प्रत्येक युग में श्रेष्ठ आचरण का महत्व रहा है। नीतिशास्त्र का कथन है कि <strong> आचार हीनं न पुनन्ति वेदाः</strong>अर्थात् आचरण से हीन व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते हैं। किसी भी महापुरुष की महानता उसके आचरण से ही आँकी जाती है। कोई भी समाज या राष्ट्र श्रेष्ठ आचरण से रहित हो जाने पर विनाश को प्राप्त हो जाता है।
धर्मग्रन्थों की दृष्टि में सुन्दरसाथ का समाज परमहंस ब्रह्ममुनियों का समाज कहा जाता है। जो व्यक्ति जितने ही उच्च शोभायुक्त पद पर विराजमान हो, उससे उतने ही श्रेष्ठ आचरण (रहनी) की अपेक्षा की जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए <strong> हमारी रहनी</strong> नामक इस ग्रन्थ की रचना की गयी है। इस ग्रन्थ में श्रीमुखवाणी, वेद, उपनिषद्, दर्शन, तथा बौद्ध धर्मग्रन्थ <strong>धम्मपद<strong> की सहायता से आचरण के सभी पक्षों पर प्रकाश डाला गया है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/hamari-rehni.jpg)
हमारी रहनी
प्लेखक- श्री राजन स्वामी![इस मायावी जगत् में जहाँ <strong> मुण्डे-मुण्डे मतिः भिन्ना</strong> की प्रवृत्ति है, वहाँ एकमत होना काफी कठिन प्रतीत होता है, फिर भी जाग्रत बुद्धि के ज्ञान से समीक्षा करने पर सभी मतों का एकीकरण हो जाता है और सभी धर्मग्रन्थों में छिपे हुए मोतियों को एकत्रित कर सत्य की माला बनायी जाती है।
इस छोटे से ग्रन्थ में श्रीमद्भागवत् के ४०, वेदान्त के १५, एवं वेद के २५ कठिनतम् प्रश्नों का समाधान करने का प्रयास किया गया है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/jyan-manjusha.jpg)
ज्ञान मंजूषा
प्लेखक- श्री राजन स्वामी![श्री प्राणनाथ जी का स्वरूप ज्ञान की दोपहरी का वह सूरज है, जिसके उग जाने पर अध्यात्म जगत में किसी भी प्रकार का अन्धकार रूपी संशय नहीं रहता। वेदों की ऋचायें जिस अक्षर-अक्षरातीत को खोजती हैं, दर्शन ग्रन्थ जिस सत्य को पाना चाहते हैं, गीता और भागवत जिस परम लक्ष्य उत्तम पुरुष की ओर संकेत करते हैं, कुरान की आयतें जिस अल्लाह तआला का वर्णन करना चाहती हैं, बाइबल जिस प्रेम के स्वरूप का वर्णन करने का प्रयास करती है, और सन्तों की वाणियाँ जिस सत्य की ओर सन्केत करती हैं, उसकी पूर्ण प्राप्ति श्री प्राणनाथ जी की वाणी में निहित है।
इस ग्रन्थ में अक्षरातीत श्री प्राणनाथ जी की लीलाओं को उपन्यास की शैली में सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/dopahar-ka-sooraj.jpg)
दोपहर का सूरज
प्लेखक- श्री राजन स्वामी![किरन्तन ग्रन्थ के प्रकरण ३५-४० उस समय उतरे, जब श्री प्राणनाथ जी मन्दसौर में सुन्दरसाथ सहित विरक्त भेष में विराजमान थे और कृपाराम जी उदयपुर का दुःख भरा समाचार लेकर आये। सुन्दरसाथ के कष्टों की निवृत्ति के लिये ये छः प्रकरण श्री महामति जी के धाम हृदय से फूट पड़े। इन प्रकरणों का श्रद्धापूर्वक पाठ सुन्दरसाथ को लौकिक कष्टों से छुटकारा दिलाता है।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/virah_ke_prakaran.png)
विरह के प्रकरण
प्रकाशक : श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, सरसावा (उ.प्र.)![सागर ग्रन्थ के अन्तर्गत आठवाँ सागर मेहेर या कृपा का सागर है। अक्षरातीत श्री राज जी की मेहर बनी रहे, इस भावना से सुन्दरसाथ किसी भी अवसर पर प्रायः इस प्रकरण का पाठ करके कार्य प्रारम्भ करते हैं।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/meher_sagar.png)
Meher Sagar
प्रकाशक : श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, सरसावा (उ.प्र.)![अनादि अक्षरातीत सच्चिदानन्द स्वरूप पूर्णब्रह्म की यथार्थ पहचान कराने वाली श्री प्राणनाथ जी की तारतम वाणी के शाश्वत सत्य मूल सिद्धांतों (परब्रह्म के धाम, स्वरूप, लीला, जीव तथा प्रकृति की अनादिता, सृष्टि रचना, योग की अंतिम मंजिल आदि)
को वेद तथा अन्य आर्ष ग्रन्थों के प्रमाणों द्वारा इस ग्रन्थ में दर्शाने का प्रयास किया गया है!](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/satyanjali.png)
सत्यांजलि
लेखक-श्री राजन स्वामी![अवैसे तो सम्पूर्ण बीतक हमारे लिये शिक्षाप्रद है परन्तु श्री राजन स्वामी जी द्वारा की गई बीतक चर्चा पर आधारित इस पुस्तक में मुख्यत: उन प्रसंगों का उल्लेख किया गया है जिनके सम्बंध में कुछ भ्रांतियां हैं तथा जो हमारे लिए विशेष रूप से आचरण में लाने योग्य हैं।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/beetak_se_shiksha.jpg)
बीतक से शिक्षाि
लेखक-श्री राजन स्वामी![आज का युग भौतिक चकाचौंध के पीछे भागने वाला युग है । वर्तमान समय पर समाज की स्थिति को देखते हुए यही अनुभव किया जा सकता है कि आज का मानव सम्पूर्ण लौकिक चाहनाओं को पाकर तृप्त हो जायेगा । परन्तु, जिसकी यथार्थ में धर्ममार्ग में रूचि है उसकी अंर्तआत्मा से तो यही आवाज निकलती है कि—मैं कौन हूं ? मैं इस संसार में कहां से आया हूं ? संसार में दुख का अनुभव क्यों कर रहा हूं ? क्या इस दुखरूपी बंधन से पृथक् होने का मार्ग नहीं है ? मैं किसके शरण में जाऊं, जहां जाने से मुझे सुख, शान्ति, आनंद, अभय की प्राप्ति होगी । जैसे मुझे यह जन्म मिला है ऐसे ही जन्म पता नहीं कब से मिल रहा होगा । क्या, इस जन्म-मरण रूपी बंधन से पृथक् होने का मार्ग नहीं है । इत्यादि प्रश्न जिसके मन में उभरने लगते हैं वही मानव शाश्वत सत्य की खोज में निकल पड़ता है । ऐसे पिपासु जनों के लिये यह 'संसार से परमधाम की ओर' नामक पुस्तक उपयोगी होगी ।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/sansar_se_paramdham_ki_or.jpeg)
संसार से परमधाम कि ओर.
लेखक :Saroj Sapkot(sikkim)![श्री प्राणनाथ जी की वाणी को जन-जन तक पहुँचाने का उत्तरदायित्व उस प्रत्येक सुन्दरसाथ का है, जिसे भी <strong>ए सुख देऊं ब्रह्मसृष्टि को, तो मैं अंगना नार</strong> का अर्थ मालूम है अथवा जिसे भी यह ज्ञात है कि उसने परमधाम में एक दूसरे को जगाने वा वायदा किया था।
इस वायदे को पूरा करने के लिये कुछ सुन्दरसाथ अत्यन्त प्रशंसनीय तरीके से वाणी के प्रचार का कार्य कर रहे हैं, जिनके कार्यों को देखकर धीरे-धीरे अन्य सुन्दरसाथ में भी जागनी की उमंग बढ़ रही है। परन्तु, यह समस्या उन सभी सामान्य सुन्दरसाथ के सामने रहती है कि यदि हम ज्ञान से जागनी की सेवा करना चाहें तो कैसे करें ? क्योंकि हमें तो वाणी का ज्ञान ही नहीं है, हम अगर प्रवचन / चर्चा करना चाहें तो पता ही नहीं है कि किन विषयों पर किन चौपाइयों को बोलें ?
सुन्दरसाथ की इसी उहापोह की स्थिति को ध्यान में रखते हुये <strong> तारतम पीयूषम्</strong> नामक किताब में श्री प्राणनाथ जी की तारतम वाणी की उन चौपाइयों का संकलन किया गया है, जिसे स्मरण करके कई विषयों पर धाराप्रवाह चर्चा की जा सकती है।
चूंकि परमधाम में एक दूसरे को जगाने का वायदा करते वक्त कोई भी महाराज, विद्वान या प्रचारक नहीं था, केवल ब्रह्मसृष्टि थी, अतः सभी सुन्दरसाथ तारतम वाणी की इस अनमोल निधि को वैश्विक स्तर पर प्रचार करने में अपने उत्तरदायित्व को समझें।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/tartam%20piyusham.jpeg)
तारतम पीयूषम्
प्रकाशक : श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ, सरसावा (उ.प्र.)![अपौरूषेय वेदों का प्रकटन सृष्टि के प्रारम्भ में चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा के हृदय में हुआ। अक्षर ब्रह्म की ज्ञान धारा उन्हीं चार ऋषियों के अन्दर एक-एक वेद के रूप में अवतरित हुई जिसे ब्रह्मा जी ने आत्मसात् करके सर्वत्र प्रसारित किया। उस ज्ञान का आंशिक प्रवाह ऋषियों द्वारा रचित ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद एवं दर्शन आदि आर्ष ग्रन्थों में विस्तृत रूप में दृष्टिगोचर होता है।
श्री प्राणनाथ जी की तारतम वाणी के द्वारा धर्मग्रन्थों के वास्तविक रहस्यों को सरलतापूर्वक जाना जा सकता है। उसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर इस ग्रन्थ में (आर्ष ज्योति में) वैदिक (आर्य) ग्रन्थों सहित लौकिक ग्रन्थों का भी संक्षिप्त रूप प्रस्तुत किया गया है, जिन्हें कण्ठस्थ कर विद्यार्थीगण लाभ उठा सकते हैं। यह ग्रन्थ आध्यात्म पिपासु विद्यार्थियों के लिये अति लाभकारी होगा।](https://www.spjin.org/assets/uploads/books/arsh_jyoti.jpeg)